The Ultimate Guide To Hindi poetry

कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो check here लाख पिएँ!

गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,

अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,

रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,

यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,

वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,

उस कविता का एक अंश ऐसे है:

आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।३२।

सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,

मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।

चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,

कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।

उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,

प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,

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